उस मौसम की याद भूलने के बाद बची है जो खाली जगह सोचता हूँ हैदराबाद के पहाड़ का एक फटा हुआ काला पत्थर जो पहले लाल था रख लूँ उसी जगह और डुबो दूँ लाल, काले और सफेद पानी में ताकि यह कोई न कह सके कि पहाड़ मर चुका है।
हिंदी समय में शैलेंद्र कुमार शुक्ल की रचनाएँ